Tuesday 31 July 2012

मेरी कविता

समाज में व्याप्त अव्यवस्था, अत्याचार, अन्याय आदी बुराईयोंके विरोध में जब मन में विचारोंका बवंडर उठता है तब मन का ‘आक्रोश’ एक कविता के रुप मे कागजपर अपनेआप उभरता है।
-    राधेश्याम हेमराज गजघाट ‘आक्रोश’

मानव जीवन
मानव जीवन बहूत अमूल्य है
इसपर मत इतराना ।
पुण्य कर्म करके जीवन में
घर लौटकर आना ।।
कठीनाईयाँ बहुत आयेगी
मगर इससे मत घबराना ।
अपना कर्म करते हुये
आगे ही बड़ते जाना ।।
तुफान बहुत आयेंगे मगर
हलचल में तु न आना ।
मंजिल ही तेरा लक्ष्य होगा
उसी ओर तू बढ़ना ।।
लोग तुझे भरमायेंगे जरुर
उसमें समय ना गवाँना ।
समय का मुल्य समझकर प्यारे
कभी कही ना रुकना ।।
सभी की भलाई में
अपनी भलाई समझना ।
दुसरों का बुरा हो
कर्म ऐसे कभी ना करना ।।
खुशी में ना इतराना
दुःख में ना घबराना ।
ये तो जीवन के रंग है प्यारे
इसमे है रंग जाना ।।
- राधेश्याम हेमराज गजघाट ‘आक्रोश’