आप
सभी को रामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएं...
अच्छाई और बुराई मे फर्क जानने के
लिए पहले हमे आत्मा के कार्य को जानना होगा। आत्मा को कार्य के आधार पर तीन भागो
मे बाँटा गया है – मन, बुध्दि और संस्कार। मन का कार्य है, विचार करना। मन को भी
चेतन एवं अचेतन मन मे बाँटा गया है। चेतन मन को हम बाह्य मन और अचेतन मन को अंतर्मन
भी कहते है। चेतन मन बाह्य वातावरण के आधार पर विचार करता है जबकी अचेतन मन आत्मा
के मुलभुत गुणोंके आधार पर विचार करता है। आत्मा मुल स्वरुप मे पवित्र, शांत और विकाररहित
होती है। इसलिये अचेतन मन मे हमेशा अच्छे और पवित्र विचार आते है परंतु चेतन मन
बाह्य वातावरण से प्रभावित होने के कारण उसपर अच्छे या बुरे, सकारात्मक या
नकारात्मक वातावरण का प्रभाव पड़ता है।
आत्मा का दुसरा महत्वपूर्ण कार्य
है - जो विचार हमारे मन मे आते है, अच्छे या बुरे, उनपर निर्णय लेना। यह कार्य
बुध्दि के द्वारा किया जाता है जिसे हम विवेक भी कहते है। हमारी निर्णय क्षमता इस
बात पर निर्भय करती है की हम चेतन या अचेतन मन मे से किसको अधिक महत्व देते है।
आत्मा का तिसरा महत्वपूर्ण कार्य
है – संस्कार, जो की हमारे पिछले और इस जन्म के कार्य के आधार पर बनते है। यदि हम
अच्छा कार्य करते है तो हमारे संस्कार भी अच्छे होते है और यदि बुरा कार्य करते है
तो हमारे संस्कार भी बुरे होते है। यह हमारे द्वारा किये गये कर्मों की रिकॉर्डिंग
है जिसके आधारपर हमारे भविष्य का निर्माण होता है। हमारे संस्कार हमारे निर्णय
क्षमता को भी प्रभावित करते है।
अब प्रश्न आता है की हम अच्छे या
बुरे कर्म मे फर्क कैसे करे? इसका सबसे सरल तरीका है – हम अपने अंतर्मन की आवाज को
अधिक महत्व दे। दुसरा तरीका है, हम इस बात पर ध्यान दे की हम जो भी कार्य करते है
उसके बारे मे हमे भविष्य मे पश्चाताप न करना पड़े। तिसरा और महत्वपूर्ण तरीका है, हम
यह सोचे की जो भी व्यवहार हम दुसरों से करते है, यदि वही व्यवहार वह हमारे साथ
करेगा तो हमे कैसा महशुस होगा। यदि हम इन बातों पर ध्यान देते है तो निश्चित तौरपर
हम अच्छे या बुरे कर्म मे फर्क कर सकेंगे।
उदाहरण के तौर पर जो मांसाहार
करते है यदि वे यह सोचे की अपने जीभ के स्वाद के लिये वे जिन प्राणियों की हत्या
करते है, वे भी किसी न किसी के बच्चे या मात-पिता होंगे। वे जैसा व्यवहार उन
प्राणियोंके साथ करते है वैसाही व्यवहार उन प्राणियोंके द्वारा उनके साथ होता है
तो उन्हे कैसा महशुस होगा।
यदि हम निस्वार्थ एवं जन कल्याण
की भावना से कार्य करेंगे तो हमारे कोई भी कर्म विकर्म नही होंगे। ०१/०४/२०१२ रामनवमी
No comments:
Post a Comment