समाज में व्याप्त अव्यवस्था, अत्याचार, अन्याय आदी बुराईयोंके विरोध में जब मन
में विचारोंका बवंडर उठता है तब मन का ‘आक्रोश’ एक कविता के रुप मे कागजपर अपनेआप
उभरता है।
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राधेश्याम हेमराज गजघाट ‘आक्रोश’
मानव जीवन
मानव जीवन बहूत अमूल्य है
इसपर मत इतराना ।
पुण्य कर्म करके जीवन में
घर लौटकर आना ।।
कठीनाईयाँ बहुत आयेगी
मगर इससे मत घबराना ।
अपना कर्म करते हुये
आगे ही बड़ते जाना ।।
तुफान बहुत आयेंगे मगर
हलचल में तु न आना ।
मंजिल ही तेरा लक्ष्य होगा
उसी ओर तू बढ़ना ।।
लोग तुझे भरमायेंगे जरुर
उसमें समय ना गवाँना ।
समय का मुल्य समझकर प्यारे
कभी कही ना रुकना ।।
सभी की भलाई में
अपनी भलाई समझना ।
दुसरों का बुरा हो
कर्म ऐसे कभी ना करना ।।
खुशी में ना इतराना
दुःख में ना घबराना ।
ये तो जीवन के रंग है प्यारे
इसमे है रंग जाना ।।
इसपर मत इतराना ।
पुण्य कर्म करके जीवन में
घर लौटकर आना ।।
कठीनाईयाँ बहुत आयेगी
मगर इससे मत घबराना ।
अपना कर्म करते हुये
आगे ही बड़ते जाना ।।
तुफान बहुत आयेंगे मगर
हलचल में तु न आना ।
मंजिल ही तेरा लक्ष्य होगा
उसी ओर तू बढ़ना ।।
लोग तुझे भरमायेंगे जरुर
उसमें समय ना गवाँना ।
समय का मुल्य समझकर प्यारे
कभी कही ना रुकना ।।
सभी की भलाई में
अपनी भलाई समझना ।
दुसरों का बुरा हो
कर्म ऐसे कभी ना करना ।।
खुशी में ना इतराना
दुःख में ना घबराना ।
ये तो जीवन के रंग है प्यारे
इसमे है रंग जाना ।।
- राधेश्याम हेमराज गजघाट ‘आक्रोश’
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