Thursday 5 April 2012

फाँसी की सजा पर राजनिती


आये दिन समाचारपत्रो में फाँसी की सजा के बारे में भिन्न-भिन्न समाचार/ प्रतिक्रियांये आते रहती है। वैसे भी हमारे देश की कानुन व्यवस्था इतनी लचर है की यहाँपर अपराधियोंको सजा दिलाना बहुत मुश्किल है। लोगोंमे कानुन के प्रति विश्वास और भय खत्म होते जा रहा है। इसके बावजूद कुछ पिड़ित पक्ष लंबी और महंगी कानुनी लड़ाई लड़कर बहुत मुश्किल से अपराधीयोंको सजा दिला पाते है। इसके बाद शुरु होती है राजनिती। जब राजनेता, अधिकतर जो की स्वंय अपराधिक छवि के होते है, कानुन के द्वारा अपराधियोंको बचाने में नाकाम होनेपर राजनितिक पैतरेबाजी पर उतर आते है। उसीप्रकार कुछ तथाकथित मानवाधिकार संस्थायें उन्हे बचाने में जुट जाती है। किसी को भी इस बात की चिंता नही रहती की इससे पिड़ित परिवार पर क्या बितती होगी। चाहे कितना भी बड़ा अपराधी, देशद्रोही या भ्रष्टाचारी क्यों ना हो, उन्हे बचाना वे अपना कर्तव्य समझते है।
अब रही बात फाँसी की सजा को उचित या अनुचित माना जाए। यदि हम फाँसी की सजा प्राप्त अपराधियोंका अध्ययन करे तो पता चलता है की बहुत दुर्लभतम केस में ही यह सजा सुनाई जाती है, जब अपराधी का अपराध बहुत घिनौना और वहशी होता है। ऐसे अपराधी समाज के लिये बहुत खतरनाक होते है और जिनकी सुधरने की गुंजाइस न के बराबर होती है। उन्हे किसीप्रकार का अपराधबोध या गलती का एहसास नही होता। ऐसे लोग इंसान कहलाने के लायक नही होते है। वे इंसान के रुप मे दानव/असुर होते है, इसलिये ऐसे  आसुरी शक्तियोंका नष्ट या विनाश हो जाना ही एक अच्छे और सभ्य समाज एवं देश के लिये जरुरी है।         
हमारे संविधान में राष्ट्रपति को फाँसी की सजा को माफ करने का अधिकार दिया है जिसका सही तरीके से उपयोग नही हो पा रहा है। वहाँपर भी घटिया राजनिती की जाती है। इसलिये मेरे विचारोंसे यदि माफी का अधिकार देना ही है तो यह अधिकार सिर्फ और सिर्फ पिड़ित परिवार को दिया जाये, किसी और को नही।               
यदि हम एक अच्छे और सभ्य समाज का निर्माण करना चाहते है तो सबसे पहले हमारी न्याय और कानुन व्यवस्था को प्रभावशाली और सरल बनाना होगा। हमे इस बात पर भी ध्यान देना होगा की न्याय और कानुन व्यवस्था का लाभ किसी भी आर्थिक भेदभाव के समाज के हर तबके को मिले। इसके अलावा न्यायिक प्रकिया को तेज गती देनी होगी ताकि एक निश्चित समय में सभी को न्याय मिल सके।           
अंत में एक महत्वपूर्ण वाक्य को यहाँपर उध्द्दत करना चाहुंगा... 
जिस समाज व राष्ट्र में सज्जनों का सम्मान-सत्कार तथा दुष्टों का अपमान व तिरस्कार नहीं होता वह समाज व राष्ट्र बहुत दिनों तक सुरक्षित नहीं रहता।