Friday 7 September 2012

मातृभाषा और हमारा विकास


मातृभाषा और हमारा विकास
हमारे दुर्गती या पिछड़ेपन का कारण संस्कृत या हिंदी नही है बल्कि अंग्रेजी और अंग्रेजीयत है। इस सच्चाई को हम अच्छी तरह जानते है की जो भी विकसित राष्ट्र है वहॉ़ पर शिक्षा का माध्यम उनकी खुद की मातृभाषा है। परंतू हम विदेशी भाषा मे शिक्षा लेकर देश को विकसित देखना चाहते है। यह कभी संभव नही हो पायेगा। ऐसा कर के हम देश के करीब ७०-८० प्रतिशत जनता को उच्च शिक्षा से वंचित कर राष्ट्र के लिये योगदान देने से उन्हें रोक रहे है। उनकी रचनात्मता को हम खत्म कर रहे है। ऐसे मे हम कैसे उम्मीद कर सकते है की हम दुनिया मे नंबर एक बनेंगे, जबकी हमारे काबिलियत पर विदेशीयोंको भी किसीप्रकार का शक नही है। हमे यदि आगे बढ़ना है तो हमे हमारी भाषा, संस्कृती और स्वंय पर विश्वास करना होगा। जितना नुकसान हमारा अंग्रेजों ने किया है उतना किसी भी आक्रमणकारीयोंने नही किया है। बाकीयों ने सिर्फ हमारी संपत्ती लुटी परंतु इन्होने तो संपत्ती के लुट साथ-साथ हमे मानसिक रुप से पंगु बना दिया। हमारे संस्कृती को बहुत नुकसान पंहुचाया ताकी हम कभी अपना सिर गर्व से ना उठा सके। पंरतु हमारी सांस्कृतिक विरासत इतनी समृद्ध थी की इतना नुकसान होने के बावजुत हमने काफी तरक्की की।
एक भाषा के तौर पर मै अंग्रेजी का सम्मान करता हूं परंतु हमारे देश के राजकाज मे जो स्थान अंग्रेजी को मिला है क्या वह स्थान अपनी मातृभाषा को दे पाये है? मै अंग्रेजी का बिल्कुल विरोध नही कर रहा हूं लेकीन मै अपनी मातृभाषा के हक की बात कर रहा हूं। क्या यह उचित है की हम दुसरों की माताओं का तो सम्मान करे और स्वंय की माता का तिरस्कार करे। यही हो रहा है आज हमारी भाषा के साथ। भाषा हमारे बिच संवाद स्थापित करने का कार्य करती है और यह कार्य जितने अच्छे तरिके से अपनी भाषा मे कर सकते है उतने अच्छे तरीके से विदेशी भाषा मे नही कर सकते। असल मे हमारी जादातर ताकत विदेशी भाषा को सिखने मे व्यर्थ चली जाती है जिसकी कतइ जरुरत नही है। हम इस बात को याद रखना होगा की विकसित राष्ट्रों ने जो भी विकास किया अपनी स्वंय की भाषा के बलबुते किया है। यदी अंतरराष्ट्रिय व्यापार के लिये अंग्रेजी सिखना जरुरी है तो यह कार्य कुछ गिने चुने लोगों द्धारा आसानी से किया जा सकता है। इसके लिये सभी को विदेशी भाषा सिखने की जरुरत नही है। तकनिकी सिखने के लिये भी विदेशी भाषा आना जरुरी नही है। तकनिती के साहित्य की भाषा का रुपांतरण का कार्य भी कुछ गिनेचुने लोग आसानी से कर सकते है। तकनीकी दिमाग से सिखी जाती है उसकी भाषा चाहे कोई भी हो। हम आजाद भारत मे रहते है। क्या हमे इतना भी हक नही होना चाहिये की हम अपनी उच्च शिक्षा अपनी मातृभाषा मे हासिल कर सके? जय हिंद...जय भारत...

Thursday 9 August 2012


बाबा रामदेव का आंदोलन एवं भारतीय मिडिया की भूमिका
भारतीय मिडिया पर कई बार सवाल खड़े किये गये और कईयों बार पक्षपात का आरोप भी लगाया गया। तब यह सवाल उठना लाजिमी है की क्या मिडिया अपनी भूमिका इमानदारी से निभा पा रही है? हमे यह भी सोचना होगा की राष्ट्र एवं समाज हित मे मिडिया की भूमिका क्या होनी चाहिये। मिडिया हमेशा दावा करता रहा है की वह अपनी जगह सही है और अपना कार्य निष्पक्ष तरिके कर रहा है। परंतु क्या मिडिया की निष्पक्षता संदेह से परे है?
जब हम इन सवालों का जवाब खोजने की कोशिश करते है तो पता चलता है की सब कुछ ठिक नही चल रहा है। मिडिया समाचारों को प्रसारित करते वक्त एक निर्णायक की भुमिका मे आ जाता है और बैगर दुसरे का पक्ष सुने अपना फैसला सुना देता है या दोषी ठहरा देता है। जिसकारण उस पक्ष को काफी जिल्लत और परेशानी का सामना करना पड़ता है।
किसी भी व्यक्ति, संगठन अथवा संस्था का कोई भी कार्य राष्ट्र एवं समाज के हित मे होना चाहिये ना की उसके खिलाफ। दुसरी महत्वपूर्ण बात है की मिडिया को सकारात्मक समाचारों को प्रसारित करने मे प्रधानता देनी होगी क्योंकी नकारात्मक समाचारों से समाज मे निराशा और बुराई फैलती है। नकारात्मक चिजों को समाज जल्दी और आसानी से ग्रहण करता है। मिडिया को सच्चाई और अच्छाई का साथ देना चाहिये क्योंकी वह जो भी दिखाता है उसका समाज पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है।
      अब बात करते है बाबा रामदेव के आंदोलन की। बाबा रामदेव भ्रष्टाचार, कालाधन और व्यवस्था परिवर्तन के मुद्दों पर आंदोलन कर रहे जिसे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रुप से करोडों भारतीयों का समर्थन प्राप्त है। यह मुद्दे सिर्फ बाबा रामदेव के लिये ही नही हम सभी देशभक्त भारतीयों के लिये भी महत्वपूर्ण है। परंतु मिडिया द्वारा उन मुद्दों पर ध्यान न देकर छोटी-छोटी गलतियों को जोरदार तरिके से उठाया जाता है, जिसकारण मुद्दे गौण हो जाते है और लोग छोटी गलतियाँ खोजने मे अपना समय गवांते है। बाबा रामदेव कोई भगवान नही है जोकी उनसे गलतीयाँ न हो। परंतु उनकी नियत पर सवाल नही किया जा सकता। इतने बड़े आंदोलन मे छोटी-मोटी गलतीयां हो सकती है और हमे उन गलतीयों पर ध्यान न देकर मुद्दों पर लड़ाई लड़नी पड़ेगी। यदी मिडिया इसमे नकारात्मक भुमिका मे आता है तो यह लड़ाई और कठीन हो जायेगी। यह हमारा सौभाग्य है की बड़ी मुश्किल से इस आंदोलन को एक सक्षम और इमानदार नैतृत्व मिला है जिसे हम अपनी बेवकुफी की वजह से व्यर्थ न गवाये।
      इस आंदोलन के सबसे बड़े दुश्मन है हमारे सो कॉल्ड बुध्दिजीवी जिन्हे करनी मे नही सिर्फ कथनी मे विश्वास है। जो बाते तो बड़ी-बड़ी करते है परंतु जब करने का मौका आता है तो भाग खड़े होते है। एसे दोगले चरित्र वाले व्यक्तियों पर विश्वास ना करे और अपने अंतर्रात्मा की आवाज सुनकर निर्णय करे।
      इस आंदोलन की सफलता पर संदेह ना करे क्योंकी परिवर्तन तो प्रकृती का नियम है और यह होकर रहेगा। हाँ, वक्त कितना लगेगा यह नही बताया जा सकता परंतु प्रकिया सुरु हो चुकी है। जय हिंद, जय भारत...

Thursday 2 August 2012

हार कभी न मानेंगे


यह मेरी नविनतम रचना है जिसे मै श्रध्देय स्वामी रामदेवजी, आचार्य बालकृष्णजी, आदरणिय अन्ना हजारेजी एवं उनके टीम के सभी देशभक्त साथीयों को समर्पित करता हू। साथ ही मै आप सभी देशवासीयों को अनुरोध करता हू की आज के इस रक्षाबंधन के पावन पर्व पर हम सभी मिलकर राष्ट्ररक्षा का संकल्प ले एवं भ्रष्टाचार और कालेधन के खिलाफ जारी आंदोलनों को हम अपना सहयोग एवं समर्थन दे। जय हिंद, जय भारत...
 हार कभी न मानेंगे
 दुष्टों के अत्याचार से हम कभी न घबरायेंगे
चाहे लाख जूल्म करलो, हार कभी न मानेंगे ।।
आजादी के दिवानों को क्या तूम डरा पाओगे?
परिवर्तन के इस आंधी को क्या तूम रोक पाओगे?
हम कभी न झुके थे, न कभी तूम झुका पाओगे
समय का चक्र न कभी रुका था, न तूम रोक पाओगे ।।१।।
भ्रष्टाचार के भस्मासुर को मिटाकर ही दम लेंगे हम
दुष्टों की दुष्टता का विनाश कर देंगे हम
हम है माँ भारती के सच्चे सपुत
अहिंसा के मार्ग पर चलकर नया इतिहास रचायेंगे ।।२।।
देश का कालाधन हम देश को दिलवायेंगे
गरीबी, लाचारी और भुखमरी को जड़ से उखाड़ फेकेंगे
समान शिक्षा, समान चिकित्सा व्यवस्था हो ऐसा कानुन बनायेंगे
असमानता की दिवार तोड़कर सबको न्याय दिलवायेंगे ।।३।।
स्वामीजी और अन्नाजी के नेतृत्व मे आगे ही बढ़ते जायेंगे
आध्यात्मिकता के बलपर जगतगुरु हम कहलायेंगे
जहाँ पर हो आपसी प्यार, मोहब्बत और भाईचारा
ऐसा गांधीजी के सपनों का भारत हम बनायेंगे ।।४।।
-    राधेश्याम हेमराज गजघाट ‘आक्रोश’

Tuesday 31 July 2012

मेरी कविता

समाज में व्याप्त अव्यवस्था, अत्याचार, अन्याय आदी बुराईयोंके विरोध में जब मन में विचारोंका बवंडर उठता है तब मन का ‘आक्रोश’ एक कविता के रुप मे कागजपर अपनेआप उभरता है।
-    राधेश्याम हेमराज गजघाट ‘आक्रोश’

मानव जीवन
मानव जीवन बहूत अमूल्य है
इसपर मत इतराना ।
पुण्य कर्म करके जीवन में
घर लौटकर आना ।।
कठीनाईयाँ बहुत आयेगी
मगर इससे मत घबराना ।
अपना कर्म करते हुये
आगे ही बड़ते जाना ।।
तुफान बहुत आयेंगे मगर
हलचल में तु न आना ।
मंजिल ही तेरा लक्ष्य होगा
उसी ओर तू बढ़ना ।।
लोग तुझे भरमायेंगे जरुर
उसमें समय ना गवाँना ।
समय का मुल्य समझकर प्यारे
कभी कही ना रुकना ।।
सभी की भलाई में
अपनी भलाई समझना ।
दुसरों का बुरा हो
कर्म ऐसे कभी ना करना ।।
खुशी में ना इतराना
दुःख में ना घबराना ।
ये तो जीवन के रंग है प्यारे
इसमे है रंग जाना ।।
- राधेश्याम हेमराज गजघाट ‘आक्रोश’

Thursday 5 April 2012

फाँसी की सजा पर राजनिती


आये दिन समाचारपत्रो में फाँसी की सजा के बारे में भिन्न-भिन्न समाचार/ प्रतिक्रियांये आते रहती है। वैसे भी हमारे देश की कानुन व्यवस्था इतनी लचर है की यहाँपर अपराधियोंको सजा दिलाना बहुत मुश्किल है। लोगोंमे कानुन के प्रति विश्वास और भय खत्म होते जा रहा है। इसके बावजूद कुछ पिड़ित पक्ष लंबी और महंगी कानुनी लड़ाई लड़कर बहुत मुश्किल से अपराधीयोंको सजा दिला पाते है। इसके बाद शुरु होती है राजनिती। जब राजनेता, अधिकतर जो की स्वंय अपराधिक छवि के होते है, कानुन के द्वारा अपराधियोंको बचाने में नाकाम होनेपर राजनितिक पैतरेबाजी पर उतर आते है। उसीप्रकार कुछ तथाकथित मानवाधिकार संस्थायें उन्हे बचाने में जुट जाती है। किसी को भी इस बात की चिंता नही रहती की इससे पिड़ित परिवार पर क्या बितती होगी। चाहे कितना भी बड़ा अपराधी, देशद्रोही या भ्रष्टाचारी क्यों ना हो, उन्हे बचाना वे अपना कर्तव्य समझते है।
अब रही बात फाँसी की सजा को उचित या अनुचित माना जाए। यदि हम फाँसी की सजा प्राप्त अपराधियोंका अध्ययन करे तो पता चलता है की बहुत दुर्लभतम केस में ही यह सजा सुनाई जाती है, जब अपराधी का अपराध बहुत घिनौना और वहशी होता है। ऐसे अपराधी समाज के लिये बहुत खतरनाक होते है और जिनकी सुधरने की गुंजाइस न के बराबर होती है। उन्हे किसीप्रकार का अपराधबोध या गलती का एहसास नही होता। ऐसे लोग इंसान कहलाने के लायक नही होते है। वे इंसान के रुप मे दानव/असुर होते है, इसलिये ऐसे  आसुरी शक्तियोंका नष्ट या विनाश हो जाना ही एक अच्छे और सभ्य समाज एवं देश के लिये जरुरी है।         
हमारे संविधान में राष्ट्रपति को फाँसी की सजा को माफ करने का अधिकार दिया है जिसका सही तरीके से उपयोग नही हो पा रहा है। वहाँपर भी घटिया राजनिती की जाती है। इसलिये मेरे विचारोंसे यदि माफी का अधिकार देना ही है तो यह अधिकार सिर्फ और सिर्फ पिड़ित परिवार को दिया जाये, किसी और को नही।               
यदि हम एक अच्छे और सभ्य समाज का निर्माण करना चाहते है तो सबसे पहले हमारी न्याय और कानुन व्यवस्था को प्रभावशाली और सरल बनाना होगा। हमे इस बात पर भी ध्यान देना होगा की न्याय और कानुन व्यवस्था का लाभ किसी भी आर्थिक भेदभाव के समाज के हर तबके को मिले। इसके अलावा न्यायिक प्रकिया को तेज गती देनी होगी ताकि एक निश्चित समय में सभी को न्याय मिल सके।           
अंत में एक महत्वपूर्ण वाक्य को यहाँपर उध्द्दत करना चाहुंगा... 
जिस समाज व राष्ट्र में सज्जनों का सम्मान-सत्कार तथा दुष्टों का अपमान व तिरस्कार नहीं होता वह समाज व राष्ट्र बहुत दिनों तक सुरक्षित नहीं रहता।

Saturday 31 March 2012

अच्छाई और बुराई मे फर्क कैसे करे

        आप सभी को रामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएं...
      अच्छाई और बुराई मे फर्क जानने के लिए पहले हमे आत्मा के कार्य को जानना होगा। आत्मा को कार्य के आधार पर तीन भागो मे बाँटा गया है – मन, बुध्दि और संस्कार। मन का कार्य है, विचार करना। मन को भी चेतन एवं अचेतन मन मे बाँटा गया है। चेतन मन को हम बाह्य मन और अचेतन मन को अंतर्मन भी कहते है। चेतन मन बाह्य वातावरण के आधार पर विचार करता है जबकी अचेतन मन आत्मा के मुलभुत गुणोंके आधार पर विचार करता है।  आत्मा मुल स्वरुप मे पवित्र, शांत और विकाररहित होती है। इसलिये अचेतन मन मे हमेशा अच्छे और पवित्र विचार आते है परंतु चेतन मन बाह्य वातावरण से प्रभावित होने के कारण उसपर अच्छे या बुरे, सकारात्मक या नकारात्मक वातावरण का प्रभाव पड़ता है।
      आत्मा का दुसरा महत्वपूर्ण कार्य है - जो विचार हमारे मन मे आते है, अच्छे या बुरे, उनपर निर्णय लेना। यह कार्य बुध्दि के द्वारा किया जाता है जिसे हम विवेक भी कहते है। हमारी निर्णय क्षमता इस बात पर निर्भय करती है की हम चेतन या अचेतन मन मे से किसको अधिक महत्व देते है।  
      आत्मा का तिसरा महत्वपूर्ण कार्य है – संस्कार, जो की हमारे पिछले और इस जन्म के कार्य के आधार पर बनते है। यदि हम अच्छा कार्य करते है तो हमारे संस्कार भी अच्छे होते है और यदि बुरा कार्य करते है तो हमारे संस्कार भी बुरे होते है। यह हमारे द्वारा किये गये कर्मों की रिकॉर्डिंग है जिसके आधारपर हमारे भविष्य का निर्माण होता है। हमारे संस्कार हमारे निर्णय क्षमता को भी प्रभावित करते है।
      अब प्रश्न आता है की हम अच्छे या बुरे कर्म मे फर्क कैसे करे? इसका सबसे सरल तरीका है – हम अपने अंतर्मन की आवाज को अधिक महत्व दे। दुसरा तरीका है, हम इस बात पर ध्यान दे की हम जो भी कार्य करते है उसके बारे मे हमे भविष्य मे पश्चाताप न करना पड़े। तिसरा और महत्वपूर्ण तरीका है, हम यह सोचे की जो भी व्यवहार हम दुसरों से करते है, यदि वही व्यवहार वह हमारे साथ करेगा तो हमे कैसा महशुस होगा। यदि हम इन बातों पर ध्यान देते है तो निश्चित तौरपर हम अच्छे या बुरे कर्म मे फर्क कर सकेंगे।
      उदाहरण के तौर पर जो मांसाहार करते है यदि वे यह सोचे की अपने जीभ के स्वाद के लिये वे जिन प्राणियों की हत्या करते है, वे भी किसी न किसी के बच्चे या मात-पिता होंगे। वे जैसा व्यवहार उन प्राणियोंके साथ करते है वैसाही व्यवहार उन प्राणियोंके द्वारा उनके साथ होता है तो उन्हे कैसा महशुस होगा।
      यदि हम निस्वार्थ एवं जन कल्याण की भावना से कार्य करेंगे तो हमारे कोई भी कर्म विकर्म नही होंगे।       ०१/०४/२०१२ रामनवमी

Wednesday 28 March 2012

मेरे विचार


हमारे पिछडे होने के कई कारण हो सकते है परंतु कुछ मुख्य कारण है- हमारे मे आत्मसम्मान एवं देशभक्ति की कमी, हमारा स्वार्थ, स्वंय के प्रति हिन भावना, अपनी क्षमताओंको न पहचान कर सिर्फ दुसरोंकी नकल करना, अपनी धर्म, संस्कृती और शिक्षा का अनादर करना, धर्म, जाति, मजहब, पंथ के नाम पर आपस मे लडकर समय और धन की बर्बादी करना आदि आदि. यदि आज भी हम अपनी क्षमताओंको पहचान कर इमानदारी से कार्य करे तो दुनिया की कोइ भी शक्ति हमे विश्व की महाशक्ती बनने से नही रोक सकती. इसके लिये जरुरत है एक अच्छे और सच्चे नेतृत्व की जिसे चुनने का अधिकार हमे संविधान ने दिया है परंतु जिसे हम पुरी गंभीरता और इमानदारी से नही निभाते. जिस दिन सारी जनता इस बात को समज जाएगी मान लिजिये उसी दिन से भारत विश्व की महाशक्ती बनने दिशा मे अपना पहला कदम रख देगा और मुझे उम्मीद ही नही अपितु पुरा विश्वास है की आनेवाला कल सुंदर ही नही अतिसुंदर होगा.....आओ हम सब मिलकर इस दिशा मे सार्थक पहल करे...जय हिंद, जय भारत... १७/०३/२०१२