Saturday 31 March 2012

अच्छाई और बुराई मे फर्क कैसे करे

        आप सभी को रामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएं...
      अच्छाई और बुराई मे फर्क जानने के लिए पहले हमे आत्मा के कार्य को जानना होगा। आत्मा को कार्य के आधार पर तीन भागो मे बाँटा गया है – मन, बुध्दि और संस्कार। मन का कार्य है, विचार करना। मन को भी चेतन एवं अचेतन मन मे बाँटा गया है। चेतन मन को हम बाह्य मन और अचेतन मन को अंतर्मन भी कहते है। चेतन मन बाह्य वातावरण के आधार पर विचार करता है जबकी अचेतन मन आत्मा के मुलभुत गुणोंके आधार पर विचार करता है।  आत्मा मुल स्वरुप मे पवित्र, शांत और विकाररहित होती है। इसलिये अचेतन मन मे हमेशा अच्छे और पवित्र विचार आते है परंतु चेतन मन बाह्य वातावरण से प्रभावित होने के कारण उसपर अच्छे या बुरे, सकारात्मक या नकारात्मक वातावरण का प्रभाव पड़ता है।
      आत्मा का दुसरा महत्वपूर्ण कार्य है - जो विचार हमारे मन मे आते है, अच्छे या बुरे, उनपर निर्णय लेना। यह कार्य बुध्दि के द्वारा किया जाता है जिसे हम विवेक भी कहते है। हमारी निर्णय क्षमता इस बात पर निर्भय करती है की हम चेतन या अचेतन मन मे से किसको अधिक महत्व देते है।  
      आत्मा का तिसरा महत्वपूर्ण कार्य है – संस्कार, जो की हमारे पिछले और इस जन्म के कार्य के आधार पर बनते है। यदि हम अच्छा कार्य करते है तो हमारे संस्कार भी अच्छे होते है और यदि बुरा कार्य करते है तो हमारे संस्कार भी बुरे होते है। यह हमारे द्वारा किये गये कर्मों की रिकॉर्डिंग है जिसके आधारपर हमारे भविष्य का निर्माण होता है। हमारे संस्कार हमारे निर्णय क्षमता को भी प्रभावित करते है।
      अब प्रश्न आता है की हम अच्छे या बुरे कर्म मे फर्क कैसे करे? इसका सबसे सरल तरीका है – हम अपने अंतर्मन की आवाज को अधिक महत्व दे। दुसरा तरीका है, हम इस बात पर ध्यान दे की हम जो भी कार्य करते है उसके बारे मे हमे भविष्य मे पश्चाताप न करना पड़े। तिसरा और महत्वपूर्ण तरीका है, हम यह सोचे की जो भी व्यवहार हम दुसरों से करते है, यदि वही व्यवहार वह हमारे साथ करेगा तो हमे कैसा महशुस होगा। यदि हम इन बातों पर ध्यान देते है तो निश्चित तौरपर हम अच्छे या बुरे कर्म मे फर्क कर सकेंगे।
      उदाहरण के तौर पर जो मांसाहार करते है यदि वे यह सोचे की अपने जीभ के स्वाद के लिये वे जिन प्राणियों की हत्या करते है, वे भी किसी न किसी के बच्चे या मात-पिता होंगे। वे जैसा व्यवहार उन प्राणियोंके साथ करते है वैसाही व्यवहार उन प्राणियोंके द्वारा उनके साथ होता है तो उन्हे कैसा महशुस होगा।
      यदि हम निस्वार्थ एवं जन कल्याण की भावना से कार्य करेंगे तो हमारे कोई भी कर्म विकर्म नही होंगे।       ०१/०४/२०१२ रामनवमी

Wednesday 28 March 2012

मेरे विचार


हमारे पिछडे होने के कई कारण हो सकते है परंतु कुछ मुख्य कारण है- हमारे मे आत्मसम्मान एवं देशभक्ति की कमी, हमारा स्वार्थ, स्वंय के प्रति हिन भावना, अपनी क्षमताओंको न पहचान कर सिर्फ दुसरोंकी नकल करना, अपनी धर्म, संस्कृती और शिक्षा का अनादर करना, धर्म, जाति, मजहब, पंथ के नाम पर आपस मे लडकर समय और धन की बर्बादी करना आदि आदि. यदि आज भी हम अपनी क्षमताओंको पहचान कर इमानदारी से कार्य करे तो दुनिया की कोइ भी शक्ति हमे विश्व की महाशक्ती बनने से नही रोक सकती. इसके लिये जरुरत है एक अच्छे और सच्चे नेतृत्व की जिसे चुनने का अधिकार हमे संविधान ने दिया है परंतु जिसे हम पुरी गंभीरता और इमानदारी से नही निभाते. जिस दिन सारी जनता इस बात को समज जाएगी मान लिजिये उसी दिन से भारत विश्व की महाशक्ती बनने दिशा मे अपना पहला कदम रख देगा और मुझे उम्मीद ही नही अपितु पुरा विश्वास है की आनेवाला कल सुंदर ही नही अतिसुंदर होगा.....आओ हम सब मिलकर इस दिशा मे सार्थक पहल करे...जय हिंद, जय भारत... १७/०३/२०१२

श्री श्री रविशंकर जी का सरकारी स्कुल पर बयान


श्री श्री रविशंकर जी का सरकारी स्कुल पर जो बयान आया था उससे मै पुरी तरह असहमत हुँ। परंतु जिस तरीके और तिव्रता से राजनेताओने उस बयान का विरोध किया वह उचित नही है। हमे रविशंकरजी की योग्यता और विद्वत्ता पर शक नही होना चाहिये। यदि रविशंकरजी जैसे आध्यात्मिक व्यक्ति यह बात कहते है तो हमे उसके गहराई मे जाना होगा, उनके कहने के तात्पर्य को समझने की कोशिस करनी होगी। हम सरकारी स्कुलोंके योगदान को नही नकार सकते परंतु उन स्कुलोंके आज के हालात को भी नजरअंदाज नही कर सकते। आज जो टिचर सरकारी स्कुल मे पड़ाते है, अच्छी तनख्वाह लेते है परंतु अपने बच्चोंको सरकारी स्कुल मे पड़ाना नही चाहते। क्यों? हमे इस बात पर भी गौर करना होगा। आज जो भी पालक अपने बच्चोंको सरकारी स्कुलोमे पड़ाते है, यदि उन्हे प्रायवेट स्कुलो मे पड़ाने का मौका दिया जाये तो वे उन्हे प्रायवेट स्कुलोंमे ही पड़ाना चाहेंगे।
कइ बार हम अपने बच्चों पर चेतावनी देने के बाबजूद नही सुधरने पर हाथ उठा देते है, इसमे हमारा उद्देश्य बच्चोंको मारना नही होता अपितू उन्हे सुधारना होता है। इसमे भलेही हमारा तरिका गलत हो सकता है परंतु हमारा तात्पर्य गलत नही होता। कभी-कभी छोटोंको सुधारने के लिये बड़ोको कड़वे बोल बोलने पड़ते है। इसका मतलब यह नही की वे हमारा बुरा चाहते है। बल्कि वे हमेशा हमारी भलाई चाहते है।
हमारी भारतिय संस्कृती हमे हमेशा बड़ोंका, गुरुओंका एवं हमारे मार्गदर्शकोंका आदर करना शिकाती है। यदि बड़े गलती भी करते है तो हमे उन्हे सम्मानजनक तरिके से उनकी गलती का एहसास कराना है, ना की उन्हे डाँटना, वे जरुर उसे स्विकार करेंगे। क्योंकि गलती तो हर इंसान से हो सकती है। बड़ोको सम्मान और छोटोंको प्यार, यही हमारी संस्कृती हैं।
आज के दिशाविहिन, सिध्दांतहिन और चरित्रहिन राजनेता सिर्फ दुसरोंका विरोध करना जानते है परंतु अपनी हजारो गलतीयाँ उन्हे नजर नही आती। असल मे देखा जाय तो उनमे सच्चाई को स्विकारने का साहस ही नही बचा है। वे तो सिर्फ स्वार्थसिध्दी के लिये राजनिती करते है। ऐसे लोगोंसे देश और जनता की भलाई के बारे मे उम्मिद करना व्यर्थ है। इसलिये यदि हम देश और सभी जनता की भलाई चाहते है तो अच्छे और चरित्रवान लोगोंको राजनिती मे लाना होगा और उन्हे जिताना होगा।
यदि आप मेरी बातो से सहमत है तो शेअर करे।....२७/०३/२०१२