Sunday 9 March 2014

हृद्य परिवर्तन



  हृद्य परिवर्तन
एक दिन जब मै
लेने जा रहा था राशन,
बिच चौराहे पर
एक नेता दे रहा था भाषण ।
आवाज थी उसकी
कुछ जानी पहिचानी,
इसलिए उसके विचार
मैंने जानने की ठानी ।
भिड़ मे खोकर
उन्हें पहिचानने की कोशिश किया,
तो अपने ही क्षेत्र के
एक वरिष्ठ नेता को मंच पर पाया ।
सुनकर उसका भाषण,
मेरा सर चकराया ।
क्योंकि
कुछ दिन पूर्व व्यक्त
उनके विचारों में भारी अंतर पाया ।
मुझे कुछ भी समझ में न आया
इतना बड़ा परिवर्तन अचानक कैसे संभव हो पाया?
कल तक जिसे कहता था गलत
वह आज सही कैसे हो गया ।
जब मैंने बाजू वाले से शंका जताई
तो उन्होंने मुझे एक राज की बात बताई ।
बोलें- साहब यह हृद्य परिवर्तन नहीं
सिध्दांतहिन राजनीति का एक उत्कृष्ट नमूना है,
स्वार्थसिध्दी के लिये एक को छोड़,
दुसरी पार्टी को चुना है ।
                       - राधेश्याम हेमराज गजघाट 'आक्रोश'

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